International Journal of Jyotish Research

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ISSN: 2456-4427, Impact Factor: RJIF 5.11

2018, Vol. 3 Issue 2, Part A
ज्‍योतिषशास्‍त्र में वर्णित सन्‍तान योग विचार
Author(s): डॉ0 नन्दन कुमार तिवारी
Abstract: ज्‍योतिषशास्‍त्र अनादिकाल से समस्‍त चराचर प्राणी को कालानुरोधेन प्रभावित करता रहा है। भारतीय वैदिक सनातन परम्‍परा में वर्णाश्रम के अन्‍तर्गत गृहस्‍थाश्रम को प्रमुख माना गया हैए जिसमें मनुष्‍य विवाहोपरान्‍त प्रवेश करता है। तत्‍पश्‍चात् ही सन्‍तान (अपत्‍य) सुख का विषय आरम्‍भ हो जाता है। पूर्व में तो कतिपय आचार्यों द्वारा विवाह का मुख्‍य उद्देश्‍य ष्सन्‍तानोत्‍पत्तिष् ही बताया जाता रहा है। दाम्‍पत्‍य जीवन का एक अभिन्‍न अंग है - सन्‍तान। पुराणों में ऐसा वर्णन है कि पुं नामक नरक से उद्धार हेतु मनुष्‍य को पुत्र की आवश्‍यकता होती है। विदित हो कि सन्‍तान का तात्‍पर्य केवल पुत्र से नहींए अपितु पुत्री से भी है। ज्‍योतिषशास्‍त्र के विविध ग्रन्‍थों में ष्सन्‍तान विचारष् का उल्‍लेख मिलता है। सम्‍प्रति समाज का प्रमुख विषय है - सन्‍तान। आज इसकी प्राप्ति हेतु आधुनिक विज्ञान द्वारा भी नवीन.नवीन प्रक्रिया विधि (सरोगेसी आदि) दिखलाई पड़ रहे हैं। प्रस्‍तुत शोध आलेख में ज्‍योतिषशास्‍त्र के अन्‍तर्गत ष्सन्‍तान का विचारष् कहाँ से किया जाता है ? किन.किन परिस्थितियों में ष्सन्‍तान योगष् होता है अथवा नहीं ? सन्‍तान विचार के लिए कौन.कौन से घटक प्रमुख है ? पुत्र होगा अथवा पुत्री ? सन्‍तान योग के परिहार पक्ष आदि समस्‍त विषयों का मैं उल्‍लेख करने जा रहा हूँ ।
Pages: 28-31  |  1035 Views  87 Downloads
How to cite this article:
डॉ0 नन्दन कुमार तिवारी. ज्‍योतिषशास्‍त्र में वर्णित सन्‍तान योग विचार. Int J Jyotish Res 2018;3(2):28-31.
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