International Journal of Jyotish Research

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ISSN: 2456-4427, Impact Factor: RJIF 5.11

2019, Vol. 4 Issue 1, Part A
वेदाङ्ग ज्‍योतिष : एक परिचय
Author(s): à¤¡à¥‰. नन्‍दन कुमार तिवारी
Abstract: à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤‚ग ज्‍योतिष कहने से ज्‍योतिष के उस भाग का बोध होता है जो वैदिक ज्‍योतिष और मानव ज्‍योतिष से भिन्‍न है। वेदांग कहते ही, वेद के छ: अंगों का नाम सामने आ जाता है। ये हैं – शिक्षा, कल्‍प, व्‍याकरण, निरूक्‍त, छन्‍द और ज्‍योतिष। इन्‍हें ‘षडंग’ भी कहा जाता है। अंगी वेद है और अंग वेदांग है।
किसी भी वस्‍तु के स्‍वरूप को जिन अवयवों या उपकरणों के माध्‍यम से जाना जाता है, उसे अंग कहते हैं। अंग शब्‍द की व्‍युत्‍पत्तिलभ्‍य अर्थ भी यही है – अंग्‍यन्‍ते ज्ञायन्‍ते अमीभिरिति अंङ्गानि। षड् वेदांगों में से चार वेदांग भाषा से सम्‍बन्धित हैं – व्‍याकरण, निरूक्‍त, शिक्षा और छन्‍द। इन चार वेदांगों से वेद का यथार्थ बोध होता है। कल्‍प के चार विभाग हैं। श्रौत, गृह्य, धर्म और शुल्‍ब। इनमें से केवल शुल्‍ब ही वैज्ञानिक शाखा का प्रतिनिधत्‍व करता है। षष्ठ अंग है -ज्‍योतिष। यह वेदांग पूर्णत: वैज्ञानिक, कालविधान कारक तथा वैदिक धारान्‍तर्गत भारतीय मनीषा की सर्वोच्‍च उपलब्धि है।
Pages: 36-40  |  3040 Views  1836 Downloads
How to cite this article:
डॉ. नन्‍दन कुमार तिवारी. वेदाङ्ग ज्‍योतिष : एक परिचय. Int J Jyotish Res 2019;4(1):36-40.
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