2019, Vol. 4 Issue 1, Part A
Abstract: संसार के समसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है, इसी सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® रचना के साथ इसे जो शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हैं वह अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं है, मनन, चिंतन, विवेक, विशà¥à¤µà¤¹à¤¿à¤¤ चिंतन, सरà¥à¤µà¥‹à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¿ के साथ समगà¥à¤° परिवार की कामना हमारे पारिवारिक मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¦à¥ƒà¥ करती है यही वेद का वेदतà¥à¤µ है।
परिवार में सà¥à¤–ी जीवन के साथ परिवार के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤à¤¾à¤µ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का à¤à¥€ वेदों में अति महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ वरà¥à¤£à¤¨ है। परिवार à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से राषà¥à¤Ÿà¥à¤° और समाज का संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ रूप है इसमें पति-पतà¥à¤¨à¥€, पà¥à¤¤à¥à¤°-पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, à¤à¤¾à¤ˆ-बहिन, आदि सà¤à¥€ समनà¥à¤µà¤¿à¤¤ हैं। à¤à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और सà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ परिवार सà¥à¤µà¤°à¥à¤— है और à¤à¤• विकृत और अवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ परिवार नरक है इसलिठवेदों में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ पारिवारिक मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं की संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ रूपरेखा पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की जा रही है।