2017, Vol. 2 Issue 1, Part A
ज्योतिष में रोगों का कारण व निवारण
Author(s): Deepti Tyagi
Abstract: पहला सुख निरोगी काया अर्थात स्वास्थ्य जीवन का सबसे बड़ा सुख हैं | यदि व्यक्ति स्वास्थ्य नही हैं तो अन्य सुख किस काम का | पुरुषार्थ में भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल आधार स्वास्थ्य है । इन चतुर्विध पुरुषार्थों को सिद्ध करने के लिए स्वस्थ होना परम आवश्यक है1। इसलिए हर कार्य को छोडकर स्वास्थ्य की रक्षा करें । स्वस्थ शरीर ही सभी कर्मों का मूलाधार हैं2| स्वस्थ शरीर को पहला धर्म माना हैं | अर्थात् धर्म, श्रेष्ठ कर्म, परमार्थ आदि करने के लिए शरीर प्रारंभिक साधन है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, तो मन में अच्छे भाव, अच्छे विचार होते हुए भी मनुष्य अच्छे कार्यों को अंजाम नहीं दे सकता। आचार्य कौटिल्य के अनुसार “सभी वस्तुओं का परित्याग करके सर्वप्रथम शरीर की रक्षा करनी चाहिए क्योकि शरीर नष्ट होने पर सबका नाश हो जाता हैं” | शरीर का शत्रु रोग रोग हैं रोगी की स्थिति मृतक के समान ही होती हैं | महाभारत के उद्योगपर्व में कहा गया हैं कि “मृत कल्पा हि रोगिण:” | ज्योतिष और आयुर्वेद दोनों ही शास्त्र की मान्यता है की रोग पूर्व जन्म में किये गये पाप इस जन्म में व्याधि के रूप में कष्ट देते हैं3| शरीर की धातुओं में वातादि दोषों में विषमता विकार अर्थात रोग उत्पन्न करते हैं | उनका ठीक होना आरोग्यता हैं आरोग्यता को सुख कहा गया हैं जबकि रोग दुःख हैं4| वातादि दोषों को संतुलित रखना ही आरोग्य का प्रमुख कारण हैं | क्योकि सभी रोगों का कारण प्रकुपित दोष ही हैं5| ग्रह-नक्षत्रादि में उपस्थित कफादि त्रिदोष मानव जीवन को प्रभावित करती हैं | रोगों की उत्पत्ति, कारण, भेद एवं लक्षण आदि के सम्बन्ध में आयुर्वेद और ज्योतिष में बहुत समानता हैं रोगोत्पत्ति के कारण के विषय में जन्म फलों का आधार पूर्व जन्मकृत कर्मों को बताया हैं जो भारतीय ज्योतिष और भारतीय चिकित्सा अर्थात आयुर्वेद दोनों ने ही ने 'जन्मांतर कृतं कर्म व्याधि रूपेण जायते”6 कह कर उसकी पुष्टि की हैं | प्रारब्ध, संचित एवं क्रियमाण कर्म के तीन भेदों में संचित कर्म ही रोगोत्पत्ति के मुख्य रूप से स्वीकृत हैं | आचार्य सुश्रुत ने कर्म व दोषों दोनों के प्रकोपों द्वारा रोगोत्पत्ति को स्वीकार किया हैं 7|
How to cite this article:
Deepti Tyagi. ज्योतिष में रोगों का कारण व निवारण. Int J Jyotish Res 2017;2(1):32-38.